


दुनियाभर में बढ़ती क्रॉनिक बीमारियों के लिए लाइफस्टाइल और खान-पान में गड़बड़ी को प्रमुख कारण बताया जाता रहा है। कई पर्यावरणीय स्थितियां भी हैं जो समय के साथ बीमारियों के खतरे को बढ़ा रही हैं। कई अध्ययन लगातार अलर्ट करते रहे हैं कि इंसानी शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ती जा रही है, जिसपर अगर समय रहते ध्यान न दिया गया तो ये आने वाले दशकों में स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाने वाली हो सकती हैं।
च्युइंग गम चबाने की आदत बढ़ा न दे मुश्किल
23-27 मार्च को आयोजित अमेरिकन केमिकल सोसाइटी की एक बैठक में इस अध्ययन की रिपोर्ट पर चर्चा की गई, जिसमें शोधकर्ताओं ने च्युइंग गम चबाने की आदत को समस्याकारक बताया है। अध्ययन में पाया गया कि केवल एक ग्राम च्युइंग गम से औसतन 100 माइक्रोप्लास्टिक रिलीज हो सकते हैं, वहीं कुछ से 600 से अधिक सूक्ष्म प्लास्टिक भी निकलते पाए गए हैं।
विशेषज्ञों ने बताया कि एक व्यक्ति जो साल में लगभग 180 च्युइंग गम चबाता है, वह 30,000 माइक्रोप्लास्टिक्स निगल सकता है। पांच ब्रांड के सिंथेटिक और पांच प्राकृतिक गम के परीक्षण में पाया गया है कि इन दोनों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी थी।
रोजमर्रा की चीजों में माइक्रोप्लास्टिक
यह अध्ययन ऐसे समय में किया गया है जब शोधकर्ता शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मात्रा को लेकर पहले से बहुत चिंतित हैं। किचन में इस्तेमाल होने वाले सामनों से लेकर, प्लास्टिक के बोतल तक सभी के माध्यम से शरीर में इस खतरे को बढ़ते हुए देखा जा रहा है। यहां तक कि हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसमें भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी देखी गई है।